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वयवस्था और साहस

sushma's view
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कोरी वासनाओ से
पढ़े लिखो की भावनाओ से ,
जब समूची धरती हिल जाती है.

टूटी संवेदनाओ से
कोख वाली मो से,
जब परते सारी खुल जाती है.

हाहाकार मचाकर
समूचा व्यापर बनाकर,
इस देह लिप्त मनसा को ख़त्म करना होगा.

डर जाएँ पापी
अपने व्यभिचार से,
इस समुचित दुनिया में निर्दोष अत्याचार से,
ख़त्म करना होगा.

और न होगा ये तो दावानल फूटेगा
ज्वाला बहने को व्याकुल होगी,
फिर इस सत्ता में
“मैं हू” या “तू है”
ख़त्म फिर मनुष्यता की गाथा होगी.

यहाँ अगर हम रेप की बात कर रहे है तो नि:संदेह उस प्रवित्ति की बात कर रहे है ,जो नेसर्गिक तो है .पर यूँ विभत्स रूप लेकर आना सचमुच समाज के लिए एक शोचनीय विषय है.यहाँ बात इस पर नहीं है सेक्स का क्या तात्पर्य है ,लड़कियां कैसे कपडे पहनती है या फिर लड़कियों को बचाव में क्या करना चाहिए. असल में बात सिर्फ हर जगह से घूम फिर कर सिर्फ समाज में ही आ जाती है. दरअसल कुच्छेक मनोधारना को छोड़ दे तो ,समाज की व्यवस्था ऐसी बन पड़ी है कि आज समाज में ये अपनी गहरी जगह बनाता जा रहा है.आज अगर खुलकर देखा जाएँ तो किसी को भी किसी चीज़ की कमी वास्तव में नहीं है,बर्शते आपके पारिवारिक मूल्य क्या है और आपको क्या सही लगता है.हम यहाँ किसी भी पक्ष में जाने से पहले ये सोच कर चलेंगे कि किसी भी कार्य के क्या दूरगामी परिणाम हो सकते है.किसी भी परिस्तिथि को एक सिरे से नजर अंदाज कर देना वाकई में किसी भी प्रकार उचित नहीं है.बात अगर बच्ची के जनम से शुरू करे तो शायद वास्तव में किसी को ही इस बात कि ख़ुशी होती होगी कि बच्ची ने जनम लिया है और अगर ख़ुशी होगी भी तो अगला बच्चा लड़का ही हो ऐसी मंगल कामना के साथ फेमिली पूरी होने कि मन्नत मग्न नहीं भूलेंगे. तो हम जो सोच रहे है और समाज बना रहे है वो तो लड़की के जनम से ही बना कर चलते है. लड़की के पवित्र और अपवित्रता को लेकर कितनी ही महान बात करके सुबह शाम लड़की को लड़की होने का एहसास करते है. पर इन सबमे एक महत्वपूर्ण बात ये है कि उनको निकाल दू जो मनुष्य है.और इस पोस्ट को पढ़ने के बाद जिन्हें स्वयं से तिल भर भी झूठ बोलने कि आवश्यकता न रहे.एक लड़की के बड़े हो जाने के बाद ,या कभी कभी तो बड़े होने की भी जरुरत नहीं ……………………आदमी लडको की निगाह में अजीब सा परिवर्तन आ जाता है.ये राह चलते तो है ही,,,,,पर उस समय बड़ा भयावह हो जाता है जब एक लड़की स्वालंबन के वास्ते कुछ करना चाहती है ,उस समय हरेक ऊपर वाला ये चाहता है कि हरेक लड़की कुछ “पेड” करे.फिर वह आप क्यों भूल जाते है कि आप किसी के बाप है ,भाई है,पति है,लड़के है.आप उम्र भूल जाते है आप संवेदना भूल जाते है ,आप इंसानियत भूल जाते है.आज रेप कि घटनाओ में बढ़ोतरी ही हुई है पर उन रेप का सिलसिला क्या जो दिन रात मज़बूरी के नाम पर,डराकर,फसाकर और सपने दिखा कर किये जाते है…………ये बड़े हास्य का विषय है कि इस बड़े मसले पर कोई “बड़ा ” नेता ,कानून विज्ञ ,अधिकारी ,समय को चलाने वाले क्यों कर नहीं एक ऐसा कानून बनाते है जो इन अपराधो कि कमर कस दे .कोई भी ————आदमी इन मासूम कि मज़बूरी का फायदा उठाने से पहले दस बार सोचे.मुझे तो कई बार लगता है कि ,कही ऐसा तो नहीं कि “अभी तक तो सब ठीक है उजला है” कही कानून बनाने के बाद सभी उसी हम्माम में एक साथ नजर आयेंगे. हम याद करे तो इस कानून से अच्छी खासी दिक्कत खड़ी हो सकती है ….और हो भी क्यों न; हम मधुमिता ,गोपाल कांडा,कई दिगाज्ज नेता ,कई फिल्म स्टार और आये दिन आलू प्याज कि तरह अधिकारी के इस तरह के कारनामे सुनते आये है .और कही ऐसा न हो कि कानून कि जद में आने वाले कि संख्या इतनी हो जाएँ कि हर कोर्ट में पाव रखने कि जगह तक न हो.तो क्या मान ले कि कानून ना बनने कि वजह यहीं है कि उस में से निकला कैसे जाएँ “वाला हल अभी तक बड़े बड़े ” लोगो के पास उपलब्ध नहीं है.
पर इन सबमे उस साहस को कैसे भूला जा सकता है जो इन मासूमो ने इतने कष्ट उठाने के बाद भी अपने दिल में जगा कर रखा है …जीने कि ललक ,लड़ने कि जिजीविषा ,दुनिया को पाठ सिखलाने कि मंशा ,उठ कर भागने कि चाहत …………………………………..

सलाम है उस जिंदगी को और बहुत सी दुआएं भी कि वो जिन्दा रहना चाहती है , और जिन्दा रहने कि चाहत उसके पास आती हर मौत को कई बार हरा कर हसती होगी ……………………………………………………..ये इंसानियत है कि वो फिर भी इस खुबसूरत समाज में रहना चाहती है जो कि उसका अधिकार है………………………………………………………………

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