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कहानी दर कहानी बढती जा रही है .हम सभ्यता के पायदान चड़ते जा रहे है रोज़ नए और नए .उचाईयों को पाने की जद्धो जहद हमें आगे बदने के लिए प्रेरित करती रही है. हम इक्कीसवी सदी की तरफ आगे बढ रहे है. अगर नहीं बढ रहा तो औरतो के प्रति मर्दों की वही एक तर की सोच . मानती हू कि बहुत से ऐसे कहते मिल जायेंगे कि औरतो कि ही गलती है …क्यों भाई ? औरतो कि गलती है क्या पुरुष पे किसी प्रकार के लगाम कि जरुरत नहीं है. लड़की को पैदा होते ही मार डालना ज्यादा बेहतर प्रतीत होता है इस दुनिया में कडुवे पन को झेलने से तो . अगर आदमियों कि बात करे तो उसके राक्षस मन में औरतो के प्रति भोग्या वाली ही सोच होती है….जब हर जगह औरतो को कम महत्वहीन समझा है इस दुनिया ने तो कैसे वो इन पुरुषो के गलत हरकतों पे सिर्फ और सिर्फ औरतो को ही गलत ठहरा सकती है. पुरुषो के प्रपंच को छुपाने के लिए इस तरह के ढोंग किये जाते है कि दुनिया सिर्फ औरत को ही गलत समझे. पुरुष क्या दूध पीता बच्चा है क्या ,जो औरत के जल में फस गया . जबकि सच्चाई तो ये है कि पुरुष किसी लड़की या औरत पर एक बार बुरी नजर डाल लेने पर उसे किसी भी तरह पाने पर अमादा हो जाते है वो गोरवान्वित होते है इस प्रकार अपने हठ को पूरा करके .और पुरुष ऐसा करने के लिए किसी भी स्तर पर उतर आने को तेयार रहते है .बात चाहे बिहार कि हो या मुंबई कि या फिर चंडीगड़ कि सभी में एक सामान बात ये है कि पुरुषो ने अपने को किंग साबित करने के लिए लड़की और औरत कि जान ले ली. हाय है ऐसी औरत पर उसने जनम ही क्यों लिया. क्यों ऐसी हवा पर विश्वास किया जो उसकी कभी नहीं हो सकती ….वो चाहे कैसी हो हर इल्जाम केवल और केवल उस पर ही आना है.दुर्भाग्य है हमारा कि हम इस दुनिया में रहते है. इससे अच्छा तो लड़कियों औरतो का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाना चाहिए. क्योकि सोच और कानून बदलेगा ये तो हो ही नहीं सकता. गोपाल कांडा हो या चन्द्र मोहन ,इन्होने पुरे कर्मकांड कर लिए अपनी एक छोटी सी हवस को पूरा करने के लिए .जहा मुस्लमान धर्म अपनाकर निकाह किया अनुराधा बाली को जितने हो सकते थे उतने सपने दिखाए और अपनी मंशा पूरी करके चलते बने…….मैं नहीं जानती कि क्यों दूर दुनिया में रहने वाले एक मत से ऐसा क्यों कह देते है कि उनकी महत्व्कांचा ने उन्हें ऐसा कराया…पर क्यों और क्यों इसके लिए सिर्फ महिला ही दोषी होती है.ये सिर्फ महिला ही जानती है कि कैसे एक पुरुष अपने जाल में फ़साने के लिए अड़ी चोटी का जोर लगा देता है …और फिर सुंदर सपने किसे अच्छे नहीं लगते ..क्या सपने देखने का हक केवल पुरुषो को है. आगे बड़ने कि ललक सिर्फ पुरुषो के ही हिस्से में लिखी है …इतना ड्रामा अगर ये न करते तो शायद आज ये भी हमारे बीच होती….बाप कि उम्र के भी परायीं लड़की के लिए भी ऐसा सोच रखते है कि जानकर ही रोगात्ते खड़े हो जाएँ .जहा कुछ सिस्टम से हार मान जाते है वाही कुछ इससे लड़ते भी है और निश्चित रूप से हार भी जाते है यहाँ विजय किसी के हाथ नहीं आती उम्र गुजरती जाती है और निरंतर आरोप प्रत्यारोप होते रहते है.कई बार स्त्री कि दुर्दशा भी हो जाती है कही तेजाब छिड़क कर और कही आरोपों में फसकर …………. तो क्या महिला का उचाईयों को पाने का सपना बेअसर है …क्या उन्हें सम्मान के साथ जीने का कोई हक नहीं .कोई रास्ता नहीं.क्या हमेशा ऐसा ही होता रहेगा .तो इस से तो अच्छा यही है कि भूर्ण ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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