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भ्भस्टाचार भ्रस्टाचार भ्रस्टाचार ; गर्माता हुआ नया मुद्दा .पर अफ़सोस की बात ये है की मुद्दे को एक आम से दिखने वाले आदमी ने अपना कर लिया.लोग खूब आगे बाद कर समझाने की और बहुत कोशिश भी की कि मुद्दा हमारी पार्टी कि तरफ से आ जाये पर एक आम आदमी ने सभी दलों को सीधा रास्ता दिखा दिया.अब लोग जुगत लगाये बैठे है कि किसी तरह तो कुछ हो कि गेंद हमारे पाले में आ जाये . बेचारे पूजनीय रामदेव जी गए थे अकेला समर्थन करने पर लोगो कि क्या कहे वही पुराना सा सवाल लेकर बैठ गए कि ” बताओ किस मंत्री ने रिश्वत मांगी थी?अपना सा मुह लेकर आ गए . इसके बाद आम से दिखने वाले आदमी ने क्या कह दिया कि नितीश और मोदी अच्छे है तो लोग पूरा सर्फ़ एक्स्सल ही लेकर चल पड़े कि कि लाओ सारे दाग ही धुल लेते है . पर वह भी टका सा जवाब मिल गया जो उस आम से आदमी ने कह दिया कि जो उन्होंने अपनी राज्य कि उन्नति के लिए किया वही बस काबिले तारीफ है बाकि कुछ नहीं. अभी राज जी का ब्लॉग समय अभाव के कारन नहीं पड़ पाई,पर शीर्षक ने मुझे थोडा सा परेशां कर दिया कि “अन्ना हजारे की” ,नहीं राज कमल जी ये शीर्षक कतई हजारे जी का ही नहीं है बल्कि उन सभी जागते हुए सो गए हिन्दुस्तानियों का है जिन्होंने इस सिस्टम से हर मान लिया था , उन्हें लगा था यहीं नियति है . इसके बाद कोई रास्ता ही नहीं बचता.
आज अगर देखा जाये तो स्तिथि ये है कि अन्ना अगर राजनीती में उतर जाये तो, निश्चित ही जीत जायेंगे. मेंटी लिटी ही ऐसी है भाई क्या करे . लोकपाल बिल में किरण बेदी जैसे साफ चरित्र के लोगो को जगह नहीं दी गयी . भ्रस्टाचार कि शुरुवात क्या यहाँ से नहीं मानी जानी चाहिए ,जिस देश में नारी को पूजे जाने को ढोंग हर मिनट चलता हो .और भ्रस्टाचार कि पहली शुरुवात मानसिक व् शारीरिक शोषण के रूप में महिलाओ के साथ ही आती हो वहा एक महिला को लोकपाल बिल विधेयक में शामिल न करके अन्ना ने अपनी राजनितिक महत्व्कांछा को प्रदर्शित कर दिया है. आखिर इस बिल में किसके हितो कि बात होगी और वाकई में कोन से मसोदे तेयार होंगे ?क्या वो भ्रस्टाचार को मिटाने को पूरी तरह प्रभावी होंगे भी या नहीं. किरण बेदी जैसे देश को समर्पित महिला और देश के लिए कुछ करने को उतारू और प्रतिज्ञा बध महिला ,जिनको “किन्ही कारणों से ” प्री रिटायर्मेंट लेनी पड़ी.आज शायद महिला होने के नाते हम सभी ” बहुत बड़ी बात करने वाले ” हम सभी ” उनके इस कृत्य को बिलकुल जड़ से भुला चुके है.
तो फिर ऐसे भ्रस्टाचार को ख़त्म करने वाले बिल कि बात हम क्यों करे जब हमारी स्तिथि जस कि तस रहने वाली है . तब भी और अब भी.आज अन्ना के साथ पूरा मिडिया कैसे खड़ा हो गया ,क्यों नहीं कल किरण के साथ खड़ा नहीं हो पाया . एक महिला पुलिस ऑफिसर कि क्या बेबसी रही होगी कि उसे अपने प्रिय छेत्र से हटना पड़ा होगा . और हम सब खामोश रहे.
भ्रस्टाचार के विरुद्ध आवाज उठनी ही चाहिए थी और इस जगह पर अगर अन्ना न होते और कोई और भी होता तो भी हम ऐसे ही खड़े होते . क्योकि बहुत हो चूका था. धन्य हो अन्ना का कि उन्होंने मार्ग प्रशस्त किया.
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