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प्यार की कहे हम भी-2

sushma's view
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“प्यार पाने की नहीं देने की चीज है”
“प्यार क्या सिर्फ दो दिलों के मेल का ही नाम हे नहीं प्यार सिर्फ यह नहीं हे प्यार भरोसा हे विस्वास हे “,
“प्यार तो हमेशा से और हर जगह व्याप्त है| सर्वत्र है मगर आज हमारी सोच और विचार इतने संकुचित हो चुके हैं कि उसके असली मायने कोई समझना नहीं चाहता|”

मेरी राय बहुत जुदा है.चलिए आज प्यार को उस कसोटी से न देखे जहा दुनिया दारी सही हो जाती है और प्यार दुनिया के विरोध की वस्तु. प्यार को अधूरे पन में न खोजे ,ये न सोचे की अगर धर्म बिरादरी नहीं मिली या गोत्र एक हो गया तो प्यार तिरस्कार की वस्तु है . ये न सोचे कि ये विरोध के स्वर है. सिर्फ और सिर्फ प्यार के विषय में सोचे . उस प्यार के विषय में सोचे जो यदि आदम हव्वा को हुआ था तो वो क्या था ?क्यों वो सही हो गया ? बड़ी हास्य कि बात है पर कितना मज़ा था आदम को हव्वा से प्यार हो गया और दुनिया बनी ही नहीं थी , {लोग नहीं थे और दुनिया दारी नहीं थी चे चे बोलने वाले नहीं थे ]और आदम हव्वा का प्यार देखो ,हम सभी तो बैठे है अपनी अपनी जगहों पर.
पियूष जी कहते है कि “मुर्दे में जान डाल दे ऐसे चमत्कारी शक्ति से पूर्ण है प्रेम…” यदि ये प्रेम इतना ही शक्तिशाली है तो क्यों कमजोर बन जाता है वो धर्म के ठेकेदारों के सामने.क्यों वो विवश हो जाता है अपने को छुपाने के लिए . यदि ये कहा जाये कि प्रेम हमेशा सात्विक ही होगा तो क्या प्यार पूछकर करना पड़ेगा कि “मम्मी कर लिया जाये प्यार “ क्योकि बड़े घर कि लड़की है प्यार के बाद शादी हो जाएगी तो बड़ा आराम रहेगा .
कोई नहीं थोडा दहेज़ जयादा आ रहा है तो प्यार खुद ब खुद हो जायेगा करने कि जरुरत क्या है . या कि फिर मुक़दमा कर देंगे यदि हमारी लड़की को छोड़ा तो , अगर शादी कि है तो निभाओ .हाँ हाँ भाई ठेकेदार भी दिख रहे है . तो ये प्यार तो बड़ा शक्तिशाली निकला.
वाहिद का ये शेर लिखना चाहूंगी कि ” “जहाँ नहीं कोई ख़ुद से मतलब,
जहाँ नहीं कोई ख़ाहिशें;
जहाँ नहीं कुछ कहना पड़े,
नहीं कोई गुज़ारिशें;”
हमारे पहाड़ी में खुद को याद लगना भी कहते है तो अगर उस नजर से देख लिया जाये इस शेर को तो शायद इसकी दहाड़ आपको सुनाई पड़े और आप थोडा सा समझे कि प्यार को कहा से शुरू करे ?
कोई कहता है प्यार नशा बन जाता है !
कोई कहता है प्यार सज़ा बन जाता है !
पर प्यार करो अगर सच्चे दिल से,
तो वो प्यार ही जीने की वजह बन जाता है
खुराना जी कि ये पंक्तिया लिख रही हु माफ़ कीजियेगा, हम प्यार को एक सिर्फ एक रिश्ते से ही जोड़ कर क्यों देखते है .माँ कि तुलना करना मुझे बहुत बुरा लगता है.माँ को प्रेम और प्यार के तराजू में रखना बहुत अखरता है, माँ तो सिर्फ माँ होती है और वैसा कोई चाहकर भी नहीं हो पता ,चाहे लाख कोशिश कर ले .उस पल्लू के टुकडे को समझने कि हिमाकत किसकी है.
माँ अपने बच्चे को फेक भी दे तो ये वो माँ ही जानती है कि वो किस दर्द से गुजर रही है.उस दर्द को सह पाना तो बहुत दूर कि बात है,माँ बहन और भाभी के प्यार को अगर प्यार कि श्रेणी में रख दिया जाये तो ये सिर्फ ममता सनेह एक अपनेपन कि बात ही होगी .यहाँ हम खोज रहे है प्यार और प्रेम . वस्तुत: प्यार
पोथी पढ़ – पढ़ जग मुआ पंडित भयो न कोय |
ढाई आखर प्रेम का पढ़े तो पंडित होय || कबीर के इन दोहों में ही पर्याप्त नहीं हो जाता .कबीर कि ये वाणी तो उन लोगो में ज्यादा फिट बैठती है जो प्यार के किसी भी भाव को नहीं जानते . दलदल से पीड़ित लोगो कि असमय देखभाल करना ,बिन बुलाये मसूरी के दुर्घटना में लोगो कि जान बचाना भी तो प्यार के नाजुक से रिस्तो को बचाने कि पहल ही है ,कौन किसका सगा था कौन किसका पराया ,किसने देखा .पर प्यार इन बातो में नहीं सिमट जाता .प्यार तो यहाँ से प्रारंभ होता है.
उन दो बच्चो के प्यारे से प्यार का वहा अंत हो गया जहा वो सीढ़ी दर सीढ़ी सिख रहे थे कि प्यार का रास्ता कहा जाता है. उन बच्चो को अपना अंत रेल कि पटरियो में ज्यादा आनंद दायक लगा जहा वो कथित दुनिया और दुनियावालो के बनाये नियमो को नहीं मानना चाहते थे.तो क्या वो जानते थे ?उनके प्यार का क्या अंजाम होगा ? वो जानते थे कि वो गलत कर रहे है? वो जानते थे कि दुनिया अपनी “दुनियादारी से” जीत जाएगी?
तो फिर कहा रहा प्यार ? कैसा रहा प्यार? क्या सिर्फ ख़त्म होने का नाम ही प्यार है. देने देने का ही नाम प्यार है. फिर हर कोई जो देना चाहता है कोई और लेने क्यों नहीं जाता ?जो लेता नहीं वो देने पर राजी कैसे हो जाता है.
देहाती कि ये पंक्तियों से कहना चाहूंगी कि
याद आ जाये गर कभी, तो मुस्करा लेना ,
भला मासूम आसुंओं को, सजा क्या देना |
तुम मुझसे नहीं मिल पाओगे, मुझको है खबर,
मगर मुझको बुलाना, चाहों तो बता देना |
प्यार को समझने के लिए जरुरी होगा इस दुनिया दारी को थोडा भूलना . उस दर्द को जरा सरका देना कि प्यार सिर्फ प्यार को छू कर चला जाये. मर्यादा में ही रहे और प्यार भी करे तो प्यार कि सीमा तय करने जैसा है .
कैफ़ी साहब कहते है ” ये भी जलना कोई जलना है,कि शोला न धुआं
अब जला देंगे ,ज़माने को जो जलना होगा.
रस्ते घूम के सब जाते है,मंजिल कि तरफ,,,,
हम किसी रुख से चले ,साथ ही चलना होगा”
प्यार कि ये धोंस समझ में आई ,कुछ तो लगा ही होगा प्यार को कहा से शुरू करे .
शुरू करे अपनी अंतरात्मा से अपने आप से / अपने लोगो से/अपने प्यार से/
किसी को भी प्यार करे पर जरुर करे . और ऐसा करे कि प्यार खुद ब खुद दोड़ता आये कि मैं प्यार हू. जब भगवान भी मजबूर हो और सवयम शिव भी सती के भाग्नावाशेस लेकर खड़े हो जाये कि तांडव से दुनिया सवर भी जाये और उजड़ भी जाये.

आगे जारी रहेगा………………………………………………………………

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