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सोशण का बदलता स्वरुप

sushma's view
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सोशण के आज मायने बदल गये है.
सोशण को आज एक नए रूप में देखा जा सकता है
जिसे आप ताकत से ली गयी ,मज़बूरी में कि गयी,ओर परिस्तिथि का डर दिखा कर पैदा कि गयी स्तिथि के रूप में देख सकते है.ये सितिथि क्या है
आप का सवाल होगा.क्योकि इस जीवन में बहुत से मोड़ो से मैंने गुजरना है,सो मैंने अपनी इच्छाये बहुत सिमित कर ली है.ना इच्छाये होगी ओर ना सोशण होगा.ये बचाव का मेरा अपना तरीका है.पर इसमें सभी को चलने से में मना करुँगी.क्योकि ये आपको बाधित करता है.ओर आपकी सीमाए काफी पहले ही रोक देता है कि आप वहा तक ना बड पाए.
मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं कि मैं आपके उड़ते कदमो को इस तरह बाधित करू पर मेरी ख्वाहिश है कि आप मुझे व् मेरी बातो को समझे
.आज सोशण होकर भी वो कही नजर नहीं आता है क्यों?क्या सभी ने अपनी जुबान में ताला लगा लिया है या फिर सभी ने बुरी हरकतों से तोबा कर ली है.
तो फिर क्यों कोई भी एक भी ऐसा प्रकरण सामने नहीं आता है जिसमे सोशण कि बात हो,जबकि सोशण हर जगह अपने पैर पसार कर खड़ा है. हर उस जगह जहा एक लड़की ओर ऑरत किसी मर्द समुदाय के साथ काम कर रहे है,वहा पर ये सोशण अपनी वास्तविक स्तिथि में ना होकर किसी ना किसी रूप में मोजूद है.
एक सरकारी परिसर कि बात करे तो सच्चाई ये है कि वहा पर लेडी स्टाफ बहुत कम है.21 आदमियो के मुकाबले वहा पर मात्र 4 लेडी स्टाफ है,ओर उन्हें एन केन कारणों से बेवजह परेशां किया जाता है.मर्दों के मुकाबले कार्य भार ज्यादा सोंपा जाता है.उम्मीद कि जाती है कि बाहर जिले में कार्य पड़ने पर लेडी स्टाफ को जबरन भेजा जाता है जबकि उसी जगह पर लाभ के अवसरों पर साथी मर्दों को उपयोग में लाया जाता है.उन्हें जबदस्ती कई छुट्टी प्रतिकार दिए जाते है ओर लेडी स्टाफ को इसकी शिकायत करने पर देख लेने कि धमकी तक दी जाती है.आदमियों के देर से आने पर कोई पूछ ताछ नहीं है जबकि लेडी स्टाफ के 5 से 10 मिनट के भी लेट पर लिखित ऑर्डर पर हस्ताक्छार करा लिए जाते है. आदमियों में से कई कईबार कुम्भ नहा आये ओर परिवारों को भी नहलवा आये लेकिन मजाल कि उनकी छुट्टी या अवकाश लगा हो.वो आकर के दुसरे दिन अपने हस्ताक्छार कर दिया करते है.जबकि लेडी स्टाफ को इन सब बातो क़ी भनक तक नहीं पड़ती.
मुझे नहीं मालूम क्यों ऐसा होता है.यहाँ तक क़ी आप के बहु बेटियो को या अगर आप नारी जाती का सम्मान करते है तो,उनको ये तक कहा जाता है बावजूद इसके क़ी आप को समय पर आना चाहिए ओर अगर आप कहते है क़ी जमाना बदल गया है तो जैसे आदमी रात को रुक कर भी काम करते है वैसे ही आपको भी रात में रुक कर काम करना चाहिए क्योकि आप आदमी से कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है.वो बात बात में कहते है क़ी आप को नोकरी करने क़ी क्या जरुरत है जब आपके घर में कमाने वाला है.फिर आप अपने घर से बाहर क्यों निकल कर आ रहे हो ओर ऐसे नोकरी कर रहे हो.ओरतो को तो घर पर चूल्हा ओर चोका ही संभालना चाहिए.
ये सोशन नहीं है तो क्या है जब एक आदमी अपनी कुत्सित भावनाओ का खुलेआम प्रचार कर रहा हो.इन सबके बाद घोर विडम्बना ये है क़ी अगर ये बाते खुल कर सामने आये तो हर एक उस नारी को ही दोसी ठहराया जायेगा..पर वहा ये नहीं सोचेगा क़ी उसने भी बर्दास्त करने तक जहर का घूट पीने क़ी अपने को बचाने क़ी आखिरी तक कोशिस करी होगी ओर जब पानी सर से ऊपर चला गया होगा तब उसने बात को हाई लाइट किया होगा.
तो इस बीमार पुरुष प्रवित्ति से बचने का क्या उपाय है.कौन से ऐसे साधन है जब ये सोष्ण हर जगह से समाप्त हो जायेगा.

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