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दो हंसो का जोड़ा बिछड़ गयो रे गजब भयो रामा अजब भयो रे
ये पंक्तिया है एक पुरानी फिल्म से.आज शादी कि मान्यता नखरे भले परिवर्तित हो गयी हो पर शादिया उसी तरह हो रही है जैसे पहले हो रही थी.कही माप तोल किया जा रहा है,कही पहचान बड़ाई जा रही है,और कही परम्पराए निभाई जा रही है.पर इन सबके बीच में भी प्यार पल रहा है और बड़ भी रहा है.इन सबके बावजूद कही कही कोई ऐसी दरार भी है जो दिखाई नहीं दे रही है पर उसकी जड़े कही गहरी जमती चली जा रही है.बच्चो में पलने वाली कुंठा उनका छीनता बचपन ये सब उन सब में शामिल है जो तलाक रूप में दिखाई पड़ रही है.अगर बात करे तलाक कि, तो तलाक वास्तव में अच्छी चीज़ नहीं है पर जब रिस्तो को ढोना एक मज़बूरी बन जाये ओर रिश्ते तल्खिया देने लगे तो उन रिश्तों को महज परम्पराव के नाम पर ढोते रहना नहीं चाहिए.मुक्त कर देना चाहिए ओर उस उडान को उड़ते हुए देखना चाहिए.क्योकि प्यार बांधे रखने वाली चीज़ नहीं.इस डोरी में भावनात्मक गर्माहट होनी चाहिए .जो एक दुसरे को सम्मान दे सके.
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