sushma's view
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पलकों के किनारे जो हमने भिगोये ही नहीं
वो सोचते है कि हम रोये ही नहीं
वो पूछते है खवाब में किसे देखते हो
ओर हम है कि अरसे से सोये ही नहीं
हमने भी चाहा कि मंजिल करीब हो
तुम्हारा साथ हमें भी नसीब हो
पर वहा खुदा भी क्या करे
जहा इन्सान खुद बदनसीब हो.
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